कभी सोचा है
बनावटी खुशियों और हंसी का दिखावा
क्योँ करते हैं लोग ?
न चाहते हुए भी , सामाजिक दवाबों का
क्यों बनते हैं भोग?
ढोंगी आचरणों का ओढ़कर चादर, बेवजह
क्यों मुस्कुराते हैं लोग ?
अपने ही पड़ोस में हिंसा को देख, क्यों
अनदेखी करतें हैं लोग ?
क्योंकि
आज दिखावा ही एक भद्र और भव्य समाज का प्रतीक है .
द्वंद चाहे कितना ही हो ,पर नाटक चले तो सभी ठीक है .
तुम्हारे दिलों और जुबां पार चाहे कितना ही दर्द क्यों ना हो
घोंट कर पी जाओ ,और नौटंकी के नायक सा सदा मुस्कुराओ .
विश्वरूप
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